फिलहाल धान की कटाई जोरों पर है। किसान गेहूं की बुवाई की तैयारी में लगे हैं। कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के वैज्ञानिक सतीश तोमर ने बताया कि गेहूं की अधिक पैदावार करने के लिए किसान ‘श्री’ विधि से बुवाई करें। इस विधि से जहां लागत कम आएगी वहीं ढाई से 3 गुना ज्यादा गेहूं की पैदावार हो सकती है।
सतीश तोमर ने बताया कि इसके लिए खेत की तैयारी भी सामान्य तरीके से ही करते हैं। खेत से खरपतवार और फसल अवशेष निकालकर खेत की तीन-चार बार जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। उसके बाद पाटा चलाकर खेत को बराबर कर जलनिकासी का उचित प्रबंन्ध करें। अगर खेत में दीमक की समस्या है तो दीमक नाशक दवाई का इस्तेमाल करें। खेत में पर्याप्त मात्रा में नमी ना होने पर बुवाई से पहले एक बार पलेवा करना चाहिए। किसानों को चाहिए खेत में छोटी-छोटी क्यारियां बनाएं। इस तरह से सिंचाई सहित दूसरे कामों को आसानी से और कम लागत में कर पाएंगे।
बुवाई का सही समय और उन्नत किस्मों का चयन
गेहूं की बीज से अधिकतम उत्पादन हासिल करने में बुवाई का समय महत्वपूर्ण कारक है। समय से बहुत पहले या बहुत बाद में गेहूं की बुवाई करने से उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। नवंबर-दिसंबर के बीच में गेहूं बुवाई खत्म कर लेना चाहिए। गेहूं की अधिक उपज देने वाली किस्मों का चयन अपने क्षेत्र के हिसाब से करना चाहिए।
‘श्री’ विधि में रोगों से बचाने के लिए करें उपचार
बुवाई के लिए प्रति एकड़ 10 किलोग्राम बीज का इस्तेमाल करना चाहिए। सबसे पहले 20 लीटर पानी एक बर्तन में गर्म करें। अब चयनित बीजों को गर्म पानी में डालें। तैरने वाले हल्के बीजों को पानी से निकाल दें। अब इस पानी में 3 किलो केचुए की खाद, 2 किलो गुड़ और 4 लीटर देशी गौमूत्र बीज के साथ अच्छी तरीके से मिलाएं। अब इस मिश्रण को 7-8 घंटे के लिए छोड़ें। इसके बाद में इस मिश्रण को जूट के एक बोरे में भरें, जिससे मिश्रण से एकस्ट्रा पानी निकल जाए। इस पानी को इकट्ठा कर खेत में छिड़कना लाभकारी होगा।
अब बीज और ठोस पदार्थ बावास्टीन 2 से 3 ग्राम प्रति किलोग्राम या ट्राइकोडर्मा 7.5 ग्राम प्रति किग्रा. के साथ PSB कल्चर 6 ग्राम और एजोबैक्टर कल्चर 6 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज के हिसाब से उपचारित कर नम जूट बैग के ऊपर छाया में फैला देना चाहिए। करीब 10-12 घंटों में बीज बुवाई के लिए तैयार हो जाते हैं। इस समय तक बीज अंकुरित अवस्था में आ जाते हैं। इसी अंकुरित बीज को बोने के लिए इस्तेमाल करना है। इस तरह से बीजोपचार करने से बीज अंकुरण क्षमता और पौधों के बढ़ने की शक्ति बढ़ती है और पौधे तेजी से विकसित होते हैं, इसे प्राइमिंग भी कहते हैं। बीज उपचार के कारण जड़ में लगने वाले रोग की रोकथाम हो जाती है। नवजात पौधे के लिए गौमूत्र प्राकृतिक खाद का काम करता है।
गेहूं की बुवाई की विधि
गेहूं की बुवाई के समय मिट्टी में पर्याप्त नमी होनी जरूरी है, क्योंकि बुवाई के लिए अंकुरित बीज का इस्तेमाल किया जाना है। सूखे खेत में पलेवा देकर ही बुवाई करना चाहिए। बीजों को कतार में 20 सेमी की दूरी में लगाया जाता है। इसके लिए देशी हल या पतली कुदाली की सहायता से 20 सेमी. की दूरी पर 3 से 4 सेमी. गहरी नाली बनाते हैं और इसमें 20 सेमी. की दूरी पर एक स्थान पर 2 बीज डालते हैं।
बुवाई के बाद बीज को हल्की मिट्टी से ढ़क देते हैं। बुवाई के 2-3 दिन में पौधे निकल आते हैं। कतार और बीज के बीच वर्गाकार (20 x 20 सेमी.) की दूरी रखने से हर एक पौधे के लिए पर्याप्त जगह मिलती है, जिससे उनमें आपस में पोषण, नमी और प्रकाश के लिए प्रतियोगिता नहीं होती है।
खाद और उर्वरक
बगैर जैविक खाद के लगातार रासायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते रहने से खेत की उपजाऊ क्षमता घटती है। इसलिए उर्वरकों के साथ जैविक खादों का समन्वित प्रयोग करना टिकाऊ फसलों के उत्पादन के लिए जरूरी रहता है। प्रति एकड़ कम्पोस्ट या गोबर खाद (20 कुंतल) या केचुआ खाद (चार कुंतल) में ट्राइकोडर्मा मिलाकर एक दिन के लिए ढ़ककर रखने के बाद खेत में मिलाना फायदेमंद रहता है।
आखिरी जुताई के पहले 30-40 किग्रा. डाय अमोनियम फास्फेट (डीएपी) और 15-20 किग्रा. म्यूरेट आफ पोटाश प्रति एकड़ की दर से खेत में फैलाकर अच्छी तरह हल से मिट्टी में मिला देना चाहिए। पहली सिंचाई के बाद 25-30 किग्रा. यूरिया और 4 कुंतल वर्मी कम्पोस्ट को मिलाकर कतारों में देना चाहिए। तीसरी सिंचाई के बाद और गुड़ाई से पहले 15 किग्रा. यूरिया और 10 किग्रा पोटाश उर्वरक प्रति एकड़ की दर से कतारों में डालना चाहिए।
सिंचाई कब-कब होनी चाहिए
गेहूं की बुवाई के वक्त खेत में अंकुरण के लिए पर्याप्त मात्रा में नमी होनी चाहिए, क्योंकि इस विधि में अंकुरित बीज ही लगाया जाता है। बुवाई के 15 से 20 दिनों के बाद गेहूं में पहली सिंचाई करनी जरूरी है, क्योंकि इसके बाद से पौधों में नई जड़ें आनी शुरू हो जाती हैं। जमीन में नमी की कमी की वजह से पौधों में नई जड़ें नहीं बन पाती हैं, जिससे फसल की ग्रोथ रूक सकती है। बुवाई के 30 से 35 दिनों के बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए, क्योंकि इसके बाद पौधों में नए कल्ले तेजी से आना शुरू हो जाते हैं। नए कल्ले बनाने के लिए पौधों को पर्याप्त मात्रा में नमी और पोषण की जरूरत रहती है। बुवाई के करीब 40 से 45 दिनों के बाद तीसरी सिंचाई देना चाहिए, इसके बाद से पौधे तेजी से बड़े होने लगते हैं। साथ ही नए कल्ले भी आते रहते हैं। गेहूं की फसल में अगली सिंचाई जमीन और जलवायु के मुताबिक होनी चाहिए। गेहूं में फूल आने के वक्त और दानों में दूध भरने के समय खेत में नमी की कमी नहीं होनी चाहिए, नहीं तो उपज में काफी कमी हो सकती है।
निराई-गुड़ाई
सिंचाई हो चुके गेहूं के खेत में लगातार नमी होने की वजह से खरपतवारों का अधिक प्रकोप रहता है, जिससे गेहूं की उपज में काफी हानि होती है। इसके अलावा सिंचाई करने के बाद मिट्टी की एक कठोर परत बन जाती है, जिससे जमीन में हवा का आवागमन तो बाधित होता ही है, पोषक तत्व और जल अवशोषण भी कम होता है। इसलिए खेत में सिंचाई के बाद निराई-गुड़ाई करना बहुत जरूरी होता है। इसके बाद पहली सिंचाई के 2-3 दिन बाद पतली कुदाली या वीडर से मिट्टी को ढीला करें और खरपतवार भी निकालें।