आत्म निर्भरता की ओर कदम बढ़ाते हुए कटनी जिले के मदनपुर गांव निवासी एक युवक ने नौकरी छोड़ खेती की राह चुनी। परम्परागत खेती से हटकर कर्मचारी से युवा किसान बने रमाशंकर कुशवाहा ने दिसंबर 2019 में जम्मू कश्मीर से सेब के पौधे मंगाए और अपनी जमीन लगाए। इसी बीच मार्च 2020 में कोरोना वायरस के संक्रमण के कारण देश में लॉकडाउन लग गया। लॉकडाउन के दिनों में रमाशंकर सेब के पौधों की देख-रेख में पूरा समय बगीचे में ही बिताया और कड़ी मेहनत की। उसी मेहनत का नतीजा है कि अब रमाशंकर की जमीन में सेब का बगीचा लहलहा रहा है।
रमाशंकर कुशवाहा ने शुक्रवार को बातचीत में बताया कि वह बिजली विभाग में ठेकेदार के साथ मीटर लगाने की नौकरी करता था। उसके उनके मन में खेती करने का विचार आया और उन्होंने नौकरी छोड़कर शुरुआत में परंपरागत धान-गेहूं आदि फसलों की खेती की। इस बीच रमाशंकर ने परम्परागत खेती से हटकर फलों की फसल तैयार करने की ठानी। दिसंबर 2019 में रमाशंकर ने जम्मू से सेब के पौधे मंगवाकर अपनी खाली पड़ी जमीन पर बगीचा तैयार करने का काम शुरु किया। रमाशंकर को उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों ने भी सेब की फसल की बारिकियों को लेकर सलाह दी।
बगीचे में बीता लॉकडाउन का पूरा समय
सेब के पौधे रोपने के तीन माह बाद ही कोरोना के चलते लॉकडाउन लग गया। उसके बाद से रमाशंकर ने पूरा समय बगीचे को तैयार करने व उसकी देखरेख में लगा दिया। किसान रमाशंकर ने लॉकडाउन के डेढ़ साल के दौरान सेब के पौधों को तैयार करने में कड़ी मेहनत की। समय-समय पर उन्होंने उद्यानिकी विभाग के अधिकारियों से सलाह ली। अब किसान की बगिया में फलों की बहार है और ताजे फलों का स्वाद लेने शहर से भी नागरिक उनके खेत तक पहुंच रहे हैं।
चीकू, नाशपाती भी तैयार
सेब के साथ किसान रमाशंकर ने बगीचे में चीकू, नाशपाती, अनानास, अमरूद, सीताफल, नीबू आदि के पौधे लगाए हैं। जिसमें चीकू, अमरूद, सीताफल में फल आने लगे हैं। स्थानीय वातावरण के प्रभाव के कारण उनके फलों का रंग थोड़ी अलग है लेकिन फलों की मिठास में कोई अंतर नहीं है। किसान रमाशंकर कुशवाहा का कहना है कि कश्मीर, उत्तराखंड और पंजाब तक में सेब की खेती हो रही है तो उन्होंने सोचा की जिले में भी ये हो सकता है, जिसके बाद उन्होंने सेब के पौधे लगाए और 16-17 माह में ही वे फल देने लगे। किसान का अनुमान है अगले साल सेब से उन्हें और अधिक मुनाफा मिलेगा।