मैंने अक्सर घरों की दीवारों, नालियों, छत की टंकियों के बीच पीपल के पेड़ उगते देखें हैं। पता नहीं कैसे वो उन जगह उग जाते हैं। हम लोग पेड़ लगाते हैं, उन्हें पानी देते, खाद देते हैं, कीटों से बचाते हैं तब जाने कितनी मेहनत के बाद एक पेड़ अस्तित्व में आता है।
लेकिन पीपल के पेड़ न जाने कैसे आपकी बालकनी में थोड़ी सी मिट्टी और नमी पाकर उग आते है। जैसे प्रकृति आप से कुछ कहना चाह रही हो। अक्सर कबूतरों या अन्य पंछियों को घर के आँगन या छत पर पा कर मेरे मन में बस एक ख़्याल आता है कि हमने इनके हिस्से के जंगल उजाड़ दिए, पेड़ों को कटवाकर अपने घर बना लिए, इसलिए वो शायद इन घरों में अपने हिस्से की जगह ढूँढ रहे हैं।
मैंने बचपन में पढ़ा था पीपल का पेड़ पर्यावरण के लिए सबसे अच्छा होता है, जहां बाक़ी पेड़ दिन में आक्सीजन और रात में कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते हैं, वहीं पीपल, नीम और ऐलोवेरा के पेड़ रात में भी आक्सीजन देते हैं। उस हिसाब से हमें अपने घरों में या खेतों में एक पीपल का पेड़ ज़रूर लगाना चाहिए। अगर कुछ पूजने योग्य है तो वह प्रकृति है।
वैसे मेरे गाँव में पीपल के पेड़ को पूजा जाता है। सुना है पीपल के पेड़ पर 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। फिर भी कोई अपने आँगन या अपनी जगह में पीपल का पेड़ नहीं लगाना चाहता। कुछ लोग ये भी कहते हैं कि पीपल के पेड़ पर सबसे ज़्यादा भूत आते हैं। ख़ैर अलग-अलग तरह की मान्यतायें हैं। लेकिन जिस पेड़ के नीचे भगवान बुद्ध ने स्वयं की खोज की, जिस वृक्ष की छाया में उन्होंने ज्ञान की प्राप्त किया, उसने कुछ तो विशेषता रही होगी।
पर मुझे लगता है हमारे पूर्वजों ने कुछ कहानियाँ इसलिए बनाई होंगी ताकि हम प्रकृति के लिए आवश्यक वृक्षों को उगाते रहें जैसे पीपल, तुलसी, नीम इत्यादि। ख़ैर नीम और तुलसी के महत्व से तो अधिकतर लोग परिचित हैं, मैं आपको पीपल के पेड़ के लाभ बताता हूँ :-
सांस की तकलीफ – सांस संबंधी किसी भी प्रकार की समस्या में पीपल का पेड़ आपके लिए बहुत फायदेमंद हो सकता है. इसके लिए पीपल के पेड़ की छाल का अंदरूनी हिस्सा निकालकर सुखा लें। सूखे हुए इस भाग का चूर्ण बनाकर खाने से सांस संबंधी सभी समस्याएँ दूर हो जाती है। इसके अलावा इसके पत्तों को दूध में उबालकर पीने से भी दमें की बीमारी में लाभ होता है।
दांतों के लिए – पीपल की दातुन करने से दांत मजबूत होते हैं और दांतों में दर्द की समस्या समाप्त हो जाती है। इसके अलावा 10 ग्राम पीपल की छाल, कत्था और 2 ग्राम काली मिर्च को बारीक पीसकर बनाए गए मंजन का प्रयोग करने से भी दांतों की सभी समस्याएँ समाप्त हो जाती हैं।
विष का प्रभाव – किसी जहरीले जीव-जंतु द्वारा काट लेने पर अगर समय पर कोई चिकित्सक मौजूद नहीं हो, तब पीपल के पत्ते का रस थोड़ी-थोड़ी देर में पिलाने पर विष का असर कम होने लगता है।
त्वचा रोग – त्वचा पर होने वाली समस्याओं जैसे दाद, खाज, खुजली में पीपल के कोमल पत्तों को खाने या इसका काढ़ा बनाकर पीने से लाभ होता है। इसके अलावा फोड़े-फुंसी जैसी समस्या होने पर पीपल की छाल को घिसकर लगाने से फायदा होता है।
घाव होने पर – शरीर के किसी हिस्से में घाव हो जाने पर पीपल के पत्तों का गर्म लेप लगाने से घाव सूखने में मदद मिलती है। इसके अलावा प्रतिदिन इस लेप का प्रयोग करने व पीपल की छाल का लेप करने से घाव जल्दी भर जाता है और जलन भी नहीं होती।
जुकाम – सर्दी-जुकाम जैसी समस्या में भी पीपल लाभदायक होता है। पीपल के पत्तों को छांव में सुखाकर मिश्री के साथ इसका काढ़ा बनाकर पीने से काफी लाभ होता है। इससे जुकाम जल्दी ठीक होने में मदद मिलती है।
त्वचा के लिए – त्वचा निखारने के लिए भी पीपल की छाल का लेप या इसके पत्तों का प्रयोग किया जा सकता है। इसके अलावा यह त्वचा की झुर्रियों को कम करने में भी मदद करता है। पीपल की ताजी जड़ को भिगोकर त्वचा पर इसका लेप करने से झुर्रियां कम होने लगती हैं।
तनाव करें कम – पीपल एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होता है, इसके कोमल पत्तों को नियमित रूप से चबाने पर तनाव में कमी होती है और बढ़ती उम्र का असर भी कम होता है.
नकसीर – नकसीर फूटने की समस्या होने पर पीपल के ताजे पत्तों को तोड़कर उनका रस निकालकर नाक में डालने से बहुत फायदा होता है। इसके अलावा इसके पत्तों को मसलकर सूंघने से भी नकसीर में आराम होता है।
ये सब बताने का तात्पर्य ये है कि हम पेड़ लगायें और सजावट के पेड़ों की जगह कुछ ऐसे पेड़ लगायें जिनसे प्रकृति, मिट्टी और पर्यावरण को लाभ हो। पिछले दिनों हमने देखा पूरे देश में ऑक्सिजन के लिए कैसे परेशानियों का सामना करना पड़ा। कई लोगों को ऑक्सिजन की कमीं से अपनी जान भी गवानी पड़ी। हम रोज़ जंगल उजाड़ रहे हैं, प्रकृति का दोहन कर रहें हैं, खनिजों के लिए पहाड़, जंगल, पेड़ सब काट रहे हैं। हम अपने घरों का कूड़ा भी नदियों में फेंक रहे हैं, कई शहरों का पानी ख़त्म हो चुका है, नदियाँ विलुप्त हो चुकीं हैं, जानवरों की अनेकों प्रजातियों का संरक्षण करना पड़ रहा है।
संदेश ये है कि अगर आप अपने बच्चों को अच्छी हवा और पानी का हक़दार मानते हैं, उन्हें आसमान में उड़ती हुई चिड़ियाँ दिखाना चाहते हैं तो अभी भी समय है। इससे पहले देर हो जाये प्रकृति से लिया हुआ अपने हिस्से का क़र्ज़ ज़रूर चुकाइए।
– विलेजवासी विशाल