साल 2014-15 के दौरान शुरू किए गए राष्ट्रीय पशुधन मिशन को सुरक्षित और न्यायसंगत पशुधन विकास के जरिए से पशुधन पालकों और किसानों, विशेष रूप से छोटे धारकों के पोषण और जीवन स्तर में सुधार लाने तैयार किया गया था।
ये व्यापक रूप से पशुधन उत्पादन प्रणालियों में जरुरी सभी कार्यकलापों और सभी हितधारकों की क्षमता के निर्माण को कवर करता है। मिशन के प्रमुख परिणाम आहार और चारे की मांग, उपलब्धता में अंतर को कम करना, स्वदेशी नस्लों का संरक्षण और सुधार करना, पर्यावरण के अनुकूल तरीके से उच्च उत्पादकता और उत्पादन, विशेष रूप से बारिश वाले क्षेत्रों में और भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के लिए आजीविका के मौकों में वृद्धि करना, जागरूकता में वृद्धि करना, जोखिम कवरेज में सुधार करना और उपभोक्ताओं को गुणवत्तापूर्ण बेहतर पशु उत्पाद उपलब्ध कराना, पशु पालकों का समग्र सामाजिक-आर्थिक उत्थान करना शामिल है।
इस योजना के 4 उप-मिशन
1. पशुधन विकास संबंधी उप-मिशन
पशुधन विकास संबंधी उप-मिशन के तहत उत्पादकता बढ़ाने, जुगाली करने वाले छोटे पशुओं, सुअरों और कुक्कुट के लिए नई नवाचारी प्रायोगिक परियोजना, पशुधन विकास, ग्रामीण बूचड़खानों, मृत पशुओं और पशुधन बीमा के संबंध में राज्य फार्मों की बुनियादी अवसंरचना को सुदृढ़ करने की व्यवस्था है।
2. पूर्वोत्तर क्षेत्र में सुअर विकास संबंधी उप-मिशन
पूर्वोत्तर राज्यों की ओर से इस क्षेत्र में सुअर पालन के विकास के लिए सहायता देने संबंधी मांग लंबे समय से की जा रही है। एनएलएम के तहत पहली बार पूर्वोत्तर क्षेत्र में सुअरों के विकास संबंधी उप-मिशन की व्यवस्था की गई है, जिसमें भारत सरकार राज्य सुअर पालन फार्मों और जर्मप्लाज्म के आयात के लिए सहायता देगी, ताकि जनता को इसका लाभ मिल सके। क्योंकि ये आजीविका से जुड़ा हुआ है और 8 पूर्वोत्तर राज्यों में प्रोटीन युक्त भोजन देने में योगदान देता है।
3. चारा और आहार विकास संबंधी उप-मिशन
चारा और आहार विकास संबंधी उप-मिशन पशु चारा संसाधनों की कमी संबंधी समस्याओं का समाधान करता है, ताकि पशुधन क्षेत्र को बढ़ावा देते हुए इसे प्रतिस्पर्धी उद्यम बनाया जा सके और साथ ही इसकी निर्यात क्षमता का इस्तेमाल किया जा सके। इसका योजना का उद्देश्य घाटे को कम कर शून्य तक लेकर आना है।
4. कौशल विकास, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और विस्तार संबंधी उप-मिशन
पशुधन कार्यकलापों के लिए क्षेत्रीय स्तर पर विस्तार मशीनरी बहुत कमजोर है। परिणामस्वरूप, किसान, अनुसंधान संस्थानों की ओर से कसित तकनीकों को अपनाने में सक्षम नहीं हैं। नई प्रौद्योगिकियों और पद्धतियों के लिए हितधारकों के बीच संपर्क की जरुरत है। ये उप-मिशन किसानों को व्यापक रूप से आगे बढ़ने में सक्षम बनाएगा।