जी हाँ, वर्टिलक फार्मिंग के जरिए किसानों की अच्छी कमाई हो सकती है. शहरी इलाकों या कम जगह वाले स्थानों में भी इस तकनीक की मदद से खेती की जा सकती है. पारंपरिक खेती की तुलना में इसमें महज 8 सप्ताह में फसल तैयार की जा सकती है. इसमें कीटनाशक की भी आवश्यकता नहीं होती है. वर्टिकल फार्मिंग एक तरह की ऐसी खेती है, जिसमें एक लेयर के ऊपर दूसरी लेयर लगाकर फल और सब्जी का उत्पाद होता है.
फल व सब्जी के मामले में भारत दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है. यूनाइडेट नेशन की एक अनुमान के मुताबिक, साल 2050 तक दुनिया की आबादी करीब 10 अरब तक पहुंच जाएगी. ऐसे में फूड प्रोडक्शन में भी 70 फीसदी का इजाफा करना होगा. साथ ही खेती के लिए नई तकनीक और इनोवेटिव तरीको की जरूरत होगी. वर्टिकल फार्मिंग यहीं पर मदद कर सकता है.
वर्टिकल फार्मिंग में तीन तरह से खेती की जा सकती है,
हाइड्रोपोनिक,
एयरेपोनिक और
एक्वापोनिक.
हाइड्रोपोनिक सिस्टम में पौधों को बिना मिट्टी के ही उगाया जाता है. इस तरह की खेती में पौधों की जड़ों को एक तरह के पोषक तत्व वाले सॉलुशन में डुबाया जाता है. इस सॉलुशन में पर्याप्त मात्रा में माइक्रोन्यूट्रिएंट्स होते हैं. पौधों को सपोर्ट करने के लिए अन्य तरह के मैटेरियल का भी इस्तेमाल किया जाता है.
एक्वापोनिक सिस्टम में एक ही इकोसिस्टम में पौधे और मछलियों को तैयार किया जाता है.
जबकि, एयरोपोनिक सिस्टम में न तो मिट्टी और न ही किसी लिक्विड की जरूरत पड़ती है. एक एयर चैम्बर में जरूरी पोषक तत्वों को लिक्विड की मदद से मिला दिया जाता है. इसमें पानी की खपत लगभग न के बराबर होती है.
इस तरह की खेती के जरिए एक एकड़ में ही करीब चार से पांच एकड़ की जमीन जितना उत्पादन हो जाता है. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (ICAR) तकनीकी स्तर पर काम कर रहा है. हालांकि, भारत में अभी भी बड़े स्तर पर इस तरह की खेती नहीं की जा रही है. अगर किसान के पास खुद की ज़मीन है तो उन्हें हर 5 साल के लिए प्रति एकड़ ज़मीन पर करीब 30.5 लाख रुपये खर्च करने होंगे.
उदारहण के तौर पर टमाटर की फसल तैयार करने के लिए कार्य-संबंधी प्रति एकड़ खर्च करीब 9 लाख रुपये पड़ता है. लेकिन इससे किसानों को करीब 33.5 लाख रुपये की कमाई हो सकती है. किसान चाहें तो कृषि लोन के तौर पर 75 फीसदी रकम लोन के रूप में ले सकते हैं. नेशनल हॉर्टिकल्चर बोर्ड से भी किसानों को 20 फीसदी सब्सिडी मिल जाएगी.