बीकानेर, 12 अक्टूबर। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के बीकानेर स्थित राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र (एनआरसीसी) के वैज्ञानिकों ने मंगलवार को गांव कक्कू, नोखा में ऊंट के बालों से उत्पाद तैयार करने संबंधी पारंपरिक व्यवसाय से जुड़े पशुपालकों से संवाद किया।
केन्द्र की अनुसूचित जाति उप.योजना के तहत आयोजित इस संवाद कार्यक्रम में कक्कू ग्राम वासियों ने विशेष रूचि दिखाई। पशुपालकों से बातचीत के दौरान केन्द्र के निदेशक डॉ आर्तबन्धु साहू ने कहा कि प्रदेश में ऊंटों की पारंपरिक उपयोगिता विविध रूपों में देखी जा सकती है। इसी क्रम में राष्ट्रीय उष्ट्र अनुसंधान केन्द्र ऊंट की ऊन से हस्त-निर्मित पारंपरिक उत्पादों की लोकप्रियता, जिनमें कई लुप्त हो रही है, को बढ़ाने की मंशा रखता है जिनकी पर्यटन उद्योग में काफी मांग देखी जा सकती है।
डॉ.साहू ने केन्द्र में इस प्रयोजनार्थ एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के आयोजन की बात कही तथा गांव के कुशल कारीगरों से यह अपेक्षा जताई कि वे प्रशिक्षण के माध्यम से अन्य ऊंटपालकों को भी इस व्यवसाय में प्रशिक्षित करें ताकि अधिकाधिक पशु पालकों को संबंधित व्यवसाय से रोजगार प्राप्त हो सके। इस अवसर पर कक्कू गांव के सरपंच हेमेन्द्र सिंह ने केन्द्र वैज्ञानिकों को यह जानकारी दी कि ग्राम स्तर पर भेड़ की ऊन का धागा तैयार किया जाता है जो कि बीकानेर की विभिन्न ऊन मीलों को भेजा जाता है, यदि भेड़ की ऊन के साथ-साथ ऊंट के बालों का भी उपयोग लिया जा सके तो कई पशु पालकों को इसका लाभ मिलेगा और ग्रामीणों के समाजार्थिक स्तर में सुधार लाया जा सकेगा। इस अवसर पर केन्द्र के प्रधान वैज्ञानिक एवं उप.योजना नोडल अधिकारी डा आर.केसावल ने कहा कि ऊंट के बालों से पारंपरिक उत्पाद तैयार करने एवं इसके प्रशिक्षण हेतु संस्थान की उष्ट्र उत्पाद प्रसंस्करण एवं प्रशिक्षण इकाई के माध्यम से परियोजना से जुड़े लोगों को सीधे स्तर पर लाभ पहुंचाया जा सकेगा। इस अवसर पर कक्कू गांव के कुशल कारीगर गोमद लोहिया ने ऊंट के बालों से निर्मित विभिन्न उत्पादों यथा.दरी, चद्दर, हस्त निर्मित उत्पाद हेतु प्रयुक्त उपकरणों आदि का प्रदर्शन भी किया।