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नैनो क्रांति से होगी कृषि, खाद्य, पोषण एवं स्वास्थ्य की सुरक्षा

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रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, झांसी एवं भारतीय चारागाह एवं चारा अनुसंधान संस्थान, झांसी के संयुक्त तत्वाधान में शीर्षक ” नैनो साइज- बिग इंपैक्ट: नैनो रिवॉल्यूशन फॉर ट्रांसफार्मिंग एग्रीकल्चर, फूड, न्यूट्रिशन एंड हेल्थ” नाम से राष्ट्रीय स्तर के वेबीनार का शुभारंभ मुख्य अतिथि डॉ तिलक राज शर्मा, उप महानिदेशक, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली, डॉ अरविंद कुमार, कुलपति, रानी लक्ष्मी बाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय की अध्यक्षता, नैनो तकनीकी के प्रख्यात वक्ताओं एवं 18 राज्यों के प्रतिभागियों की गरिमामई उपस्थिति में हुआ।

डॉ प्रशांत जांभूलकर, आयोजन सचिव ने अपने स्वागत सम्बोधन में आज के वेबिनार कार्यक्रम की रूपरेखा रखी एवं उपस्थित वैज्ञानिकों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया। डॉ अनिल कुमार , प्रमुख आयोजक ने वेबिनार की महत्ता से अवगत कराया। वेबीनार में उप महानिदेशक आईसीएआर के मुख्य अतिथि डॉ. टी. आर. शर्मा ने अपने उद्घाटन संबोधन में वैज्ञानिकों को दक्षता बढ़ाने गुणवत्ता में सुधार लाने और अपव्यय को कम करने के लिए नई नई प्रौद्योगिकियों का भारतीय कृषि में समावेश करने का सुझाव दिया।

उन्होंने बताया नैनो तकनीकी का अगर समझदारी से कृषि के क्षेत्र में उपयोग किया जाए तो फसल का उत्पादन बढ़ाने से लेकर मिट्टी की गुणवत्ता में सुधार की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि भविष्य के नैनो-प्रौद्योगिकी अनुसंधान को नैनो-विष विज्ञान के तंत्र पर भी ध्यान देना चाहिए। इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उन्होंने युवा वैज्ञानिकों को सहयोग करने और एक छत्र के नीचे आने के लिए कहा ताकि स्थायी फसल उत्पादन प्राप्त करने के लिए लक्षित दृष्टिकोण पर काम किया जा सके। उन्होंने रामानुजन, रामलिंग स्वामी और डीएसटी इंस्पायर फैकल्टी जैसे प्रतिष्ठित फेलोशिप वाले युवा वैज्ञानिकों को लक्षित करते हुए एक युवा वैज्ञानिक सम्मेलन आयोजित करने का सुझाव दिया।

इसके बाद कुलपति प्रोफेसर अरविंद कुमार ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में नैनो तकनीक आधारित नैनो-हर्बिसाइड और नैनो-उर्वरक के उपयोग पर जोर दिया। उन्होंने विभिन्न अनुप्रयोगों के लिए नैनो-यूरिया और चावल की भूसी आधारित नैनो-सिलिका के उपयोग का उल्लेख किया तथा सरकार के नैनो मिशन का भी जिक्र किया। भारत के इस मिशन का फोकस स्वास्थ्य और कृषि सहित विभिन्न क्षेत्रों में है। अंत में, उन्होंने कहा कि नैनो-कण आधारित बायोसेंसर का उपयोग कैंसर सहित कई रोगो के निदान में किया जाता है।

उद्घाटन के बाद प्रथम सत्र में डॉ अनिल कुमार निदेशक शिक्षा, आरएलबीसीएयू, झांसी ने कृषि-खाद्य-पोषण के लिए नैनो-कृषि विषय पर पहला मुख्य व्याख्यान दिया। उन्होंने विभिन्न विज्ञानों में नैनो-विज्ञान और प्रौद्योगिकी के अनुप्रयोगों और जीवन के सभी पहलुओं में उनके उपयोग का उल्लेख किया तथा विभिन्न नैनो-कणों के हरित/जैविक संश्लेषण से लेकर पौधों की वृद्धि और बायोफोर्टिकेशन में उनके अनुप्रयोगों के अपने शोध परिणामों को दिखाया। उन्होंने गोमूत्र और गोबर को कम करने वाले एजेंटों के रूप में उपयोग करके गाय आधारित नैनो-कणों पर जोर दिया, जो नैनो-कणों के संश्लेषण के लिए आवश्यक कदम है।

इसके बाद द्वितीय वक्ता डॉ रमेश रेलिया, इफको इंडिया ने टिकाऊ और सटीक कृषि के लिए नैनो-उर्वरक पर व्याख्यान दिया। उन्होंने नियमन, नीति स्तर और अनुसंधान एवं विकास स्तर दोनों पर अप्रयुक्त उर्वरकों के प्रभाव को कम करने के प्रयासों पर जोर दिया जैसे उर्वरकों का लेप, बहु-पोषक तत्वों को मिलाना, उन्हें घुलने में सक्षम बनाना, जैव जीवों के साथ सह-उर्वरक और बेहतर उपयोग और फैलाव के लिए आकार को कम करना।

उन्होंने सटीक और टिकाऊ कृषि के लिए नैनो-उर्वरक के उपयोग पर भी जोर दिया क्योंकि नैनो-उर्वरक में मात्रा की तुलना में अधिक सतह क्षेत्र होता है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र – सतत विकास लक्ष्य के दृष्टिकोण के साथ यूट्रोफिकेशन पूरक की चुनौतियों का समाधान करने के लिए लक्षित वितरण, नियंत्रित रिलीज, सूक्ष्म मात्रा वाले नैनो-उर्वरक की विशेषताओं पर जोर देते हुए अपनी प्रस्तुति को संक्षेप में प्रस्तुत किया।

उन्होंने इसी तरह के शोध कार्यों के लिए विश्वविद्यालय से सहयोग करने की बात दोहराई। नैनो-उर्वरक पर उनके विचार और अनुभव निश्चित रूप से हमें उर्वरक प्रदूषण की वैश्विक समस्या का समाधान करने और पौधों द्वारा पोषक तत्व उपयोग दक्षता को बेहतर तरीके से बढ़ाने के लिए रणनीति तैयार करने में मदद करेंगे।

आज के सत्र के अंतिम वक्ता डॉ. एम. जी. एच. जैदी, प्रोफ़ेसर, बायोकेमिस्ट्री, जी. बी. पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर एंड टेक्नोलॉजी पंतनगर ने हरित सामग्री विज्ञान: प्रसंस्करण, निर्माण और अपशिष्ट प्रबंधन के परिप्रेक्ष्य के अंतर्गत नैनो-विज्ञान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हासिल की गई उपलब्धियों के बारे में जानकारी दी। उन्होंने कार्बन नैनोट्यूब और ग्राफीन की अनूठी विशेषताओं का उल्लेख किया। हालांकि नैनो टेक्नोलॉजी शब्द नया है, लेकिन नैनो-टेक्नोलॉजी की घटना पुरानी है और पहले से ही प्रकृति में मौजूद है और प्राचीन भारतीयों द्वारा इसका इस्तेमाल किया जाता था।

उन्होंने अल्बर्टो जियाओमेट्टी की एक प्रसिद्ध पंक्ति को उद्धृत किया,असफलता मेरी सबसे अच्छी दोस्त है, अगर मैं सफल हुआ तो यह मरने जैसा होगा। शायद नवोदित वैज्ञानिक इन पंक्तियों से सीख सकते हैं कि हमें असफलता की परवाह किए बिना चुनौतियों का सामना करना चाहिए।

कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ. पीयूष बबेले एवं डॉ. मनीत राणा ने किया । डॉ. तनुज मिश्रा और डॉ. शैलेंद्र कुमार ने तकनिकी सहयोग प्रदान किया।

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