सशक्त समाज के निर्माण में स्त्री के महत्त्व को व्यक्त करने के लिए हिंदी शब्दकोश में शायद ही इससे बेहतर कोई विचार कभी लिखा गया हो| यें बात कहते हुए गांधी जी ने सोचा होगा कि आने वाली पीढ़ियां समाज में महिलाओं की बराबरी की हिस्सेदारी के महत्त्व को समझेंगी| अब आप सोचते होंगे कि जब हर कोई कोरोना से जंग जीतने में लगा है तो ऐसे समय में नारी सशक्तिकरण की बात क्यों जरूरी है इसलिए ये बताना जरुरी है कि आज भारत के की “बा” कहलाने वाली कस्तूरबा गांधी के जन्म के 150 वर्ष पूरे हुए हैं|
जहाँ एक और सरकार पिछले कुछ महीनों से बापू के जन्म के 150 साल पूरे होने के उत्सव में देश भर में चरखा और झाड़ू घुमा रही है, विपक्ष रोज सरकार पर गांधी के लोकतंत्र की हत्या करने का आरोप लगा कर अपनी छाती पीट रहा है और महिलाओं के अधिकार के हर मुद्दे पर तथाकथित फेमिनिस्ट टीवी चैनलों पर चिल्ला कर देश की जनता को बहरा करने में लगी हुई हैं, आखिर वहां एक सशक्त एवं स्वतंत्र समाज में महिला अस्तित्व की मिशाल पेश करने वाली “बा” को याद करने की उम्मीद किस से की जाये ?
आज “बा” की जन्मजयंती के अवसर पर न तो सत्ता, न विपक्ष और न ही गांधी परिवार की ओर से कस्तूरबा गाँधी के बारे में कुछ सुनने और पढ़ने को मिला| तो फिर कैसे आने वाली पीढ़ियों से उम्मीद की जाये की वो इस देश के गौरवशाली इतिहास का हिस्सा रही मातृशक्ति के बारे में जानेगें| क्या ये मान लिया जाये कि आज़ादी के नायक- नायिकाओं को याद रखने वाली ये आखरी पीढ़ी है या फिर इसकी जिम्मेदारी भी राजनीति, मीडिया और बॉलीवुड के दिग्गजों पर छोड़ दी जाये ?
इंदिरा गांधी को सत्ता और परिवार के लिए एक नाम की ज़रूरत थी तो उन्होंने मोहनदास करमचंद गांधी से गांधी उधार ले लिया| मोदी जी को अपनी हिन्दू कट्टरपंथी इमेज की रिब्रांडिंग करनी थी तो उन्होंने कांग्रेस से बापू को ही छीन लिया, लेकिन पितृ सत्तात्मक संस्कार से ग्रसित हमारी संस्कृति में “बा” के हिस्से ना तो कोई वोट बैंक आया और ना ही वो फेमिनिज़्म की रोल मोडल बन पाई|
कस्तूरबा गाँधी, महात्मा गाँधी के ‘स्वतंत्रता कुमुक’ की पहली महिला प्रतिभागी थीं। देश की स्वतंत्रता को लेकर “बा” का अपना एक दृष्टिकोण था, वो एक सशक्त समाज के निर्माण में महिलाओं की भूमिका और महिलाओं में शिक्षा के महत्त्व को भली-भांति समझती थी| बापू के साथ – साथ स्वतंत्र भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना उन्होंने भी की थी। उन्होंने हर परिस्थिति में देश की आज़ादी के दौरान बापू के क़दम से कदम मिलाकर स्वतंत्रता की मुहीम को आगे बढ़ाया|
‘बा’ जिस समर्पण और राष्ट्रभक्ति के साथ बापू के प्रयासों में उनके साथ रही उसके बिना गाँधी जी के सारे अहिंसक प्रयास शायद ही उतने प्रभावी होते| “बा” ने विषम परिस्थितियों में अपने नेतृत्व का परिचय भी दिया, जब-जब गाँधी जी जेल गए थे, वो स्वाधीनता संग्राम के सभी अहिंसक प्रयासों में अग्रणी बनी रहीं।
बकौल महात्मा गाँधी, “जो लोग मेरे और बा के निकट संपर्क में आए हैं, उनमें अधिक संख्या तो ऐसे लोगों की है, जो मेरी अपेक्षा बा पर कई गुना अधिक श्रद्धा रखते हैं”
आज विचार करने योग्य बात ये है कि महिला सशक्तिकरण की जिस शक्ति को हासिल कर आज हम फेमिनिज़्म के मुद्दों पर बात कर रहे हैं उसकी नींव रखने वाली रोल मॉडल्स को हम कैसे याद करते हैं| राजनीति हमेशा उन्ही नामों पर की जाएगी जो वोटबैंक का धुर्वीकरण करने के काम आते हैं, लेकिन उनके विचारों को पोसने वाले मातृत्व का स्मरण करना हम सबका उत्तरदायित्व है|