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वैज्ञानिकों ने वर्मी कम्पोस्ट व अपशिष्ट खाद के बताये फायदे

vermicompost training for farmers
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केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने कराया कार्यक्रम, पर्यावरण स्वच्छता पर दिया संदेश

घरेलू एवं कृषि के अपशिष्ट, कार्बन उत्सर्जन और मृदा उर्वरता के महत्व को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान ने किसानों, ग्राम प्रधान एवं वैज्ञानिकों की सहायता से ढकवा एवं अन्य गांव में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सम्बंधित प्रौद्योगिकियों को प्रचारित करने के कार्यक्रम आयोजित किए। प्रतिभागियों को आईसीएआर प्रौद्योगिकियों जैसे एकसेल डीकंपोजर कैप्सूल, धान, गेहूं के अवशेषों के लिए इन-सीटू अपघटन प्रौद्योगिकी, फैमिली नेट वेसल कम्पोस्ट (एफएनवीसी) और कृषि अपशिष्ट खाद पर जानकारी दी गई।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने संस्थान द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी जैसे सीआईएसएच बायो-एनहांसर और वर्मी कम्पोस्टिंग के उपयोग को प्रचारित किया और उन्हें किसानों को वितरित किया। जिससे वे इनकी उपयोगिता को अपने खेतों पर भी स्वयं देख सकें। संस्थान के वैज्ञानिकों ने मेरा गांव मेरा गौरव योजना के तहत मलिहाबाद प्रखंड के दो गांवों में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया और युवाओं, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों के लिए स्वयं और पर्यावरण स्वच्छता का संदेश दिया।

संस्थान के वैज्ञानिकों ने एक वेबिनार श्रृंखला में भी भाग लिया। इसमें अपशिष्ट उपयोग और धन सृजन पर दो व्याख्यान शामिल थे। इस संदर्भ में, परिवारों और प्रसंस्करण उद्योग के लिए अतिरिक्त आय उत्पन्न करने में सक्षम विभिन्न उत्पादों तथा धान एवं गेहूं की कटाई के बाद निकलने वाले कचरे को परिवर्तित करने के लिए माइक्रोबियल प्रौद्योगिकियों के उपयोग की सलाह दी गई। एकीकृत कीट प्रबंधन (आईपीएम) प्रणाली में प्राकृतिक कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं और जैविक नियंत्रण के उपयोग उपयोग पर वैज्ञानिकों ने चर्चा की। यह आयाम जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में तेजी से महत्वपूर्ण होता जा रहा है। आईपीएम उत्पाद का विपणन और ब्रांडिंग एक प्रीमियम मूल्य पर किया जा सकता है। यह उत्पाद मध्यम और उच्च वर्गों की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं क्योंकि उन्हें भोजन में हानिकारक रसायनों के नकारात्मक प्रभावों की समझ है। इस दौरान संस्थान के आवासीय परिसर में बच्चों के लिए एक पेंटिंग प्रतियोगिता हुई, जिसमें बच्चों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। उन्होंने अपने चित्रों द्वारा यह प्रदर्शित किया कि वर्तमान पीढ़ी भी धरती माता के स्वास्थ्य के बारे में समान रूप से verचिंतित है।

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा विकसित विभिन्न तकनीकों ने किसानों को उत्पादन प्रणाली में लाभकारी मूल्य वर्धित आदानों के उत्पादन के लिए फसल के बाद कृषि अवशेषों का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया है। किसान धीरे-धीरे यह महसूस कर रहे हैं कि स्थायी कृषि को बढ़ावा देने के लिए फसल अवशेष जलाने के विकल्प अपनाकर अधिक लाभदायक और पर्यावरण के अनुकूल तरीके से आर्थिक लाभ एवं पर्यावरण की सुरक्षा की जा सकती है।

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