रानी लक्ष्मीबाई केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति के निर्देशन एवं निदेशक प्रसार शिक्षा के मार्गदर्शन में रबी में चना की उत्पादन तकनीक एवं उन्नत किस्मों की जानकारी दी गई है।
कृषि वैज्ञानिक डा. निशांत भानु और डा. अंशुमान सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में चने की बुआई का उचित समय 15 अक्टूबर से 15 नवंबर तक है। जहां सिंचाई की अच्छी सुविधा हो, वहां बुआई नवंबर के अंतिम सप्ताह या दिसंबर के प्रथम सप्ताह तक कर सकते हैं, देर करने पर फली भेदक कीट का प्रकोप भी अधिक होता है। देसी चने की उन्नत प्रजातियां आरवीजी 202, आरवीजी 201, बीजी 3062 (पूजा पार्वती), बीजी 10216 (पूसा चना 10216), आईपीसी 2006-77 अथवा काबुली में आरवीकेजी 201 उपयुक्त है। आरवीजी 202, आरवीजी 203 सिंचित एवं पछेती बुआई के लिए उपयुक्त है और यह 100 से 105 दिन की अवधि में तैयार हो जाती है, वहीं बीजी 3062 के दाने मध्यम बड़े होते हैं और यह यांत्रिक कटाई के लिए भी उपयुक्त है । इन प्रजातियों की उपज क्षमता 20 से 22 कुं. प्रति हेक्टेयर है। उचित अंकुरण हेतु चना की बुआई 5 से 8 से.मी. की गहराई पर करें और कतार से कतार की दूरी 25 से 30 से.मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 10 से.मी. रखनी चाहिए। बुआई सीडड्रिल से करने पर बीज की गहराई तथा पंक्तियों की दूरी नियंत्रित रहती है तथा जमाव भी अच्छा होता है। देसी चने को 75 से 80 कि.ग्रा. प्रति हे. तथा काबुली प्रजाति को 90 से 100 कि.ग्रा प्रति हे. की दर से बुआई करें।
बीज जनित रोगों से बचाव हेतु फफूंदी नाशक द्वारा बीज उपचार अति आवश्यक है। चना को उक्ठा एवं जड़ गलन बीमारी से बचाव हेतु 2 से 5 ग्राम थिरम या 1 ग्रा. बाविस्टीन प्रति कि.ग्रा. बीज के दर से उपचारित करे । चने के लिए 20 कि.ग्रा नत्रजन, 40 कि.ग्रा फास्फोरस, 20 कि.ग्रा पोटाश एवं 20 कि.ग्रा गंधक का प्रयोग प्रति हे. की दर से करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण हेतु फ्लूक्लोरैलीन 45 ई.सी. की 2 लीटर मात्रा प्रति हे. लगभग 800 से 1000 लीटर पानी में घोलकर बुआई के तुरंत पहले मिट्टी में मिला देने से या फिर पेंडिमिथिलीन 30 ई.सी. की 3 लीटर अथवा एलाक्लोर 50 इ.सी. की 4 लीटर मात्रा प्रति हे. पानी में घोल बनाकर बुआई के 2 से 3 दिन के अंदर समान रूप से छिड़काव करने से खरपतवार नियंत्रित हो जाता है।
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